आई एस, आई एस आई एस या पी एफ आई। क्या सबका उद्देश्य गजवा ए दुनिया है विपुल लखनवी की एक रिपोर्ट

By: Surendra
Oct 03, 2022
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नवी मुंबई : व्यक्तिगत रूप से गजवा ए दुनिया से सहमत नहीं हूं कि किसी का उद्देश्य पूरी दुनिया पर राज्य करने का एक सामूहिक उद्देश्य हो सकता है। यह केवल मन का भ्रम है और अपनी सत्ता की लालसा को पद प्रतिष्ठा को बनाने के लिए आतंकवादी संगठनों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। यहां तक की बगदादी भी खलीफा बनने के सपने देख रहा था यह केवल कुछ सिरफिरे लोगों की सोच हो सकती है जो सत्ता के लालच में आम भोले भाले जनमानस को भड़का कर इस तरह का नारा देकर बहकाने में सफल हो रहे हैं। हमें इनको विफल करना ही होगा क्योंकि कई देशों का हश्र जहां इस तरह के अभियान चालू हुए थे आज मिट्टी में मिल चुके हैं। 

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि सीरिया और इराक में 10,000 से अधिक इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी सक्रिय है। संयुक्त राष्ट्र ने बताया है कि इस वर्ष इस्लामिक स्टेट के हमलों में काफी वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद विरोधी व्लादिमीर वोरोन्कोव ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वक्तव्य दिया है कि युद्धक्षेत्र में इस्लामिक स्टेट की हार के बावजूद इस आतंकवादी संगठन के छोटे-छोटे स्लीपर सेल स्‍वतंत्र रूप से पश्चिम एशिया, अफ्रीका सहित कई अन्य देशों में सक्रिय है। वोरोन्कोव के अनुसार, कई अफ्रीकी देशों में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव है। विशेषकर लीबिया, कांगो, माली, नाइजर और मोजाम्बिक में इनका बड़ा नेटवर्क है। पश्चिम अफ्रीका में यह संगठन वैश्विक प्रचार का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है।

ज्ञात हो कि विगत कुछ दिनों में भारत से भी इस्लामिक स्टेट और पी एफ आई के कई आतंकवादियों को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह लोन वुल्फ अटैक करने की योजना बना रहे थे। भारत से इस्लामिक स्टेट के आतंकियों की गिरफ्तारी चिंता का विषय है क्योंकि आतंकवाद से प्रभावित शीर्ष देशों की सूची में भारत भी शामिल है।

विश्लेषकों का मानना है कि बगदादी की मौत ने इस आतंकवादी संगठन को कमज़ोर किया है किंतु इसे समाप्त मानना एक भूल साबित हुई है। इसलिये इस्लामिक स्टेट को आतंकवाद के एक वाहक के रूप में विश्व के समक्ष अभी भी खतरे के रूप में देखा जा रहा है। इस्लामिक स्टेट की स्थापना जमात अल-ताव्हिद वल जिहाद के नाम से वर्ष 1999 में हुई मानी जाती है। अमेरिका पर वर्ष 2001 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने अल-क़ायदा को समाप्त करने के लिये इराक में प्रवेश किया। इस मौके का लाभ उठाकर इस्लामिक स्टेट ने अपनी स्थिति को मज़बूत किया। अरब स्प्रिंग के समय संपूर्ण मध्य-पूर्व की तानाशाही सरकारें गंभीर संकट झेल रहीं थी। वर्ष 2011 में सीरिया में असद की तानाशाह सरकार के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन हुए, जो शीघ्र ही गृह-युद्ध में बदल गया।

इराक भी सद्दाम हुसैन की मृत्यु के बाद अस्थिरता की स्थिति से जूझ रहा था। इराक और सीरिया की सुभेद्य स्थिति उग्रवादी एवं आतंकवादी संगठनों को उर्वरक भूमि उपलब्ध करा रही थी। इसी का लाभ उठाकर इस्लामिक स्टेट ने वहाँ के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया तथा वर्ष 2014 में मोसूल पर कब्ज़ा करने के पश्चात् अपने संगठन का नाम परिवर्तित कर इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया कर लिया।

पश्चिम एशिया प्रमुख रूप से इस्लामी मान्यताओं को मानने वाला क्षेत्र है। किंतु इस क्षेत्र में इस्लाम के भीतर ही लोग विभिन्न समुदायों यथा-शिया, सुन्नी और कुर्द में विभाजित हैं। इस क्षेत्र में विद्यमान विभिन्न समस्याओं की जड़ में अन्य कारकों के साथ-साथ इस सांप्रदायिक संघर्ष को भी एक बड़ा कारक समझा जाता है।

किसी भी संगठन को बनाए रखने के लिये आर्थिक स्रोतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस्लामिक स्टेट भी इससे भली-भाँति परिचित था। इसी पृष्ठभूमि में आई एस ने इराक एवं सीरिया के आयल फील्ड पर कब्ज़ा कर लिया। जिससे इस आतंकवादी संगठन को बड़ी मात्रा में धन प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त जबरन वसूली, धार्मिक कर, सुन्नी समर्थक लोगों से आर्थिक सहायता भी इस संगठन के महत्त्वपूर्ण आर्थिक स्रोत बने। इस्लामिक स्टेट की सबसे बड़ी ताकत है इसकी युवाओं को आकर्षित करने की क्षमता। विदित हो कि आई एस ने लड़ाकों की नियुक्ति के लिये बाकायदा नियोक्ताओं की सेवाएँ ले रखी हैं। वह इन नियोक्ताओं को धन देता है और बदले में ये नियोक्ता सोशल मीडिया, गुप्त गोष्ठियों आदि के माध्यम से युवाओं को धर्म के नाम पर दिग्भ्रमित करते हैं और एक ऐसी लड़ाई लड़ने के लिये इन्हें प्रेरित करते हैं जिसका उद्देश्य खिलाफत की स्थापना करना है।

वर्तमान में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव अफ्रीका महाद्वीप के लीबिया, कांगो, माली, नाइज़र और मोजाम्बिक में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। इसी तरह से यूरोप में फ्रांस और ब्रिटेन में इसका प्रसार हो रहा है। वर्तमान में ब्रिटेन में हो रहे हैं हिंदू विरोधी हमले एक सुनियोजित षड़यंत्र के रूप में देखे जाते हैं।

हालाँकि विश्व स्तर पर तथा भारत में इसको अधिक सफलता नहीं मिली लेकिन विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान अन्य आतंकी संगठन इससे जुड़ गए हैं। आई एस ने संबद्ध संगठनों को विलायत का नाम दिया, जिसका अर्थ एक प्रशासनिक इकाई के रूप में लिया जा सकता है।

इस्लामिक स्टेट के चरमोत्कर्ष के दौर में विश्व में विशेष रूप से पश्चिमी विश्व तथा पूर्वी एशिया में आतंकी घटनाओं में वृद्धि हुई। साथ ही इन घटनाओं को रोकना कठिन हो गया। इस प्रकार के हमलों को किसी व्यक्ति या एक छोटे से समूह द्वारा अंजाम दिया जाता था और इनका किसी भी आतंकवादी संगठन से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता था। इस प्रकार के हमलों को लोन वुल्फ अटैक कहा गया। इसमें आतंकी इंटरनेट तथा सोशल मीडिया द्वारा आई एस की विचारधारा से जुड़ता था और इंटरनेट के माध्यम से ही हमलों के लिये विशेषज्ञता प्राप्त करता था।

इस्लामिक स्टेट भले ही वर्तमान में इराक एवं सीरिया में कमजोर हो गया है तथा उसके कब्ज़े में कोई क्षेत्र भी नहीं है, इसके बावजूद वह विश्व के समक्ष एक बड़ा खतरा बना हुआ है। इस्लामिक स्टेट में शामिल विदेशी लड़ाके जिनकी संख्या 25-30 हजार आँकी जा सकती है, अपने देशों में वापस लौटने में सफल हुए हैं। ये लड़ाके आई एस की विचारधारा में विश्वास रखते हैं और अपने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती बने हुए हैं।

भारत में आईं एस के आतंकी गिरफ्तारी, श्रीलंका में हुए आतंकी हमले तथा इंडोनेशिया एवं फिलीपींस के आत्मघाती हमलों ने आई एस के खतरे से विश्व को आगाह किया है। इस्लामिक स्टेट के उच्च स्तर के कई आतंकियों के मारे जाने के बावजूद इसने पूर्वी अफगानिस्तान क्षेत्र में तालिबान से भी अधिक आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया है। एशिया ही नहीं बल्कि अफ्रीका में भी आई एस से संबद्ध आतंकी संगठन सक्रिय हैं। पूर्व में नाइजीरिया का एक बड़ा आतंकी संगठन बोकोहरम भी आई एस से संबद्ध था लेकिन कुछ समय पूर्व इससे अलग हुई आई एस की एक शाखा इस क्षेत्र, विशेषकर उत्तरी नाइजीरिया में अधिक सक्रिय है।

ज्ञात हो इद्लिब, जहाँ आई एस सरगना बगदादी मारा गया था, तुर्की सीमा से केवल 50 किमी. की दूरी पर स्थित है, साथ ही तुर्की और सीरिया की सीमा रेखा पर कुर्दिश लड़ाके मौजूद हैं। इससे तुर्की आई के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाता है।

बगदादी की वैश्विक विस्तार की कल्पना में उसने भारत को भी खुरासान प्रांत के रूप में शामिल किया था। भारत में इस्लामिक स्टेट के आतंकी का गिरफ्तार होना निश्चित ही चिंता का विषय है। वर्तमान में पी एफ आई के भी संबंध होने के सबूत मिले हैं।

अनुमान है कि भारत से 100-200 लोग आई एस में भर्ती होने के लिये सीरिया, इराक और अफ़ग़ानिस्तान की ओर गए थे। इनमें पी एफ आई के संलग्न होने के आरोप हैं। इनकी वापसी के बाद भारत में इनसे खतरा उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार के समर्थक भारत में युवाओं को भर्ती करने तथा स्लीपर सेल की भूमिका निभाने एवं साथ ही आवश्यकता पड़ने पर आतंक फैला सकते हैं।

कुछ समय पूर्व भारत सरकार ने कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया है, इससे कश्मीर में तनाव की स्थिति है पर नियंत्रण में बनी हुई है। विश्लेषकों का मानना है कि आई एस भारत में अपने प्रसार के लिये कश्मीर मुद्दे का दुष्प्रचार कर सकता है। इसके अतिरिक्त भारत में सोशल मीडिया विनियमन भी कमज़ोर है। जिससे कोई भी आतंकी संगठन भारत के युवाओं की मनोवृत्ति बदलने, उनको प्रभावित करने तथा उन्हें आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिये तैयार कर सकता है।

जिस इस्लामिक स्टेट को पूरी दुनिया समाप्त मानने लगी थी, अब आतंक के एक नये कलेवर में सबके सामने है। आई एस के लड़ाके छोटे-छोटे समूहों में पूरे विश्व में फैल रहे हैं। वैसे भी इस्लामिक स्टेट पिछले कुछ समय से लगातार भारत को निशाना बनाने के अपने इरादों को ज़ाहिर करता आ रहा है। भारत इसे रोकने के लिये एक्शन प्लान बनाता है संभवतः पी एफ आई पर बैन एक पहल है।  

दरअसल, युवावस्था में व्यक्ति अभूतपूर्व ऊर्जा महसूस करता है और जिस भी दिशा में इस ऊर्जा का उपयोग किया जाए वहाँ उल्लेखनीय परिणाम दिखने को मिलते हैं, सरकार को आई एस की इसी नस पर चोट करनी होगी, युवाओं को आई एस के विचारों से दूर रखना होगा। इस कारण वर्तमान सरकार युवाओं को लुभाने के लिए अलग-अलग तरीकों की योजनाएं पर अमल कर रही है। सरकार को अपने एक्शन प्लान के तहत  के एक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए तो यह काफी कारगर होगा, जगह-जगह सेमिनार हो युवाओं को सूफी परंपरा और वहाबी परंपरा का मर्म बताया जाना चाहिये।

कुछ भी हो वर्तमान में भारत सहित पूरे विश्व में अशांति के बादल पैर आ रहे हैं और समय-समय पर गजवा ए हिंद ऐसे शब्द मीडिया में और नेट पर देखने को मिल जाते हैं सरकार को बहुत सावधानी के साथ और नई रणनीतियों के साथ इन चुनौतियों से निपटना है अब देखना यह है की जनता इसमें कितना सहयोग करती है और क्या आगे आने वाले समय में वर्तमान सरकार को और अधिक समय दिया जाता है कि नहीं? क्योंकि कुछ विपक्षी दल सत्ता के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं और भारत तोड़ने वाले तत्वों के साथ तालमेल कर सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं। भविष्य क्या होगा यह तो एक लाख टके का प्रश्न है? इसका उत्तर तो आने वाला समय ही बताएगा।


Surendra

Reporter - Khabre Aaj Bhi

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